प्रेम रतन धन पायो

प्रेम रतन धन पायो

Avinal Kumar | | 1219 words | ~6 mins

टूटता तारा देखना एक अलौकिक अनुभव है। हिमाद्रि के छत से आसमान कुछ ज्यादा ही करीब प्रतीत होता है । लोग सदियों से हिमालय को पूजते आयें हैं । दादा-दादी कहा करते थे ये जिंदा पहाड़ हैं । सारी बातें सुनते हैं लोगों की । उनके दुख दर्द दूर करते हैं, ये देवता हैं । आजकल जब रोज़ क्लास आते जाते दूर पहाड़ों की चोटियाँ देखता हूँ तो उनकी विशालता का अनुभव होता हैं । एक पल को अगर ये मान लिया जाए की हमारी सारी धार्मिक किताबें वो कहानियाँ हैं जो पथिक लेखकों के द्वारा लिखी गयी हैं तो सारी बातें साफ हो जाती है कि क्यूँ देवी-देवताओं ने हिमालय को अपनाया है। टूटता तारा देखना अलौकिक है पर हिमालय की श्रेणियों से टूटता तारा देखना दैविक है । और वो कहते हैं न जिसमें न कोई तर्क हो न ही हाथों की सफाई वो दैविक है। टूटते तारो के बारे में लोगों के बहुत सारे विश्वास हैं । कभी विभीषिका का पूर्वाभास माने जाने वाले इन टूटते तारे आज इच्छा पूरक के प्रतीक हैं । कुछ लोगों का ये भी मानना है कि टूटते तारे दिवंगत लोगों का संकेत हैं । हिमालय की कन्दराओं में न जाने कितने ही ऋषि-मुनियों ने तप करते हुए अपना जीवन अर्पित कर दिया । इसलिए हिमालय की पहाड़ों से टूटता तारा देखना दैविक हैं क्योंकि शायद वो तारे उन ऋषि-मुनियों की पवित्र आत्माओं का संकेत हैं ।

प्रकृति की सुंदरता और कलाकारी हिमालय की कण-कण में झलकती है। प्रकृति ने प्रेम को भी हिमालय के जितना ही विशाल और अलौकिक बनाया है । ये एक अलग चर्चा का विषय है कि हिमालय पहले आया या प्रेम। मैं तो प्रेम के पक्ष में हूँ । वो हर अणु-परमाणु जिन्होंने इतने बड़ा पहाड़ खड़ा किया वो सब आपस में प्रेम से बंधे हुए हैं। ये पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा, आकाश-गंगा इत्यादि सब प्रेम से बंधे हुए हैं । और हिमाद्रि के छत पर मैं इसी प्रेम के आगोश में आकर भावशून्य होकर तारों को निहार रहा था । तभी मानो सदियों की मन्नत पूरी हुई और मुझे एक टूटता तारा दिखा । आप मेरी स्थिति की जटिलता का अनुभव इस प्रकार से लगा सकते हैं कि लोग टूटते तारे से मन्नत मांगते हैं और मैं टूटता तारा ही मन्नत में मांग रहा था । इससे पहले की मैं पिछली जटिलता से बाहर आता की दूसरी जटिलता सामने आ पड़ी की तारा तो दिख गया पर मैं माँगूँ क्या ? और अगर आप सोच रहे की भाई पैसे मांग लो शोहरत , नाम , शक्ति और पता नहीं क्या-क्या ? मांग तो लेता पर अगर आप मेरी जगह इसी स्थिति में होते तो शायद आपको भी ये सब याद न आता । तो मैं एक पल को ये आकलन करने लगा की क्या कुछ ऐसा है जिसकी मुझे बहुत जरूरत है पर मेरे पास हो नहीं । और आपको पता है की गहरी सोच में जाने पर अक्सर क्या होता है। अब वो लोग जो ये सोच रहे की भाईसाब आप हर कहानी(सच्ची घटना का विवरण वाली कहानी 😊) में सो क्यूँ जाते हैं। सच बताऊँ तो इसका कोई सटीक जबाव नहीं है मेरे पास, पर अध्यात्म ये कहता है की जब आप सो रहे होते हैं तो आपका मन चेतना के कई स्थिति से गुजरता है। जब आप परम चैतन्य अवस्था में होते हैं तो रहस्य, प्रतिभज्ञान इत्यादि के रास्ते खुल जाते हैं। और विज्ञान ये भी कहता है कि निद्रा के माध्यम से इस अवस्था में जाना उतना ही अनिश्चित है जितना किसी बाला का मेरे लिए प्रेम-प्रस्ताव । सरल शब्दों में – मैं कुछ समय के लिए सो गया।

आज से ठीक 2 महीने पहले अगर ये मुझसे कोई पूछता की क्या चाहिए तुम्हें तो शायद मेरे पास जबाव होता। दोस्त तो बहुत हैं पर जब कोई ऐसा हो जो आपके अधूरे वाक्य पूरे कर सके, कोई ऐसा जो आपकी भावनाओं को आपकी तरह समझ सके, कोई ऐसा जो आपको आपके असल रूप में पसंद करता हो । आपको लग रहा होगा की मैं एक प्रेमिका का विवरण दे रहा हूँ, पर नहीं या शायद हाँ , मैं समझता हूँ की अधिकतर लोग प्रेमिका शब्द का प्रयोग अनुचित ढंग से करते हैं। जहां प्रेम है वहाँ प्रेमी-प्रेमिका होंगे फिर वो भाई-बहन का रिश्ता हो या माँ-बेटे का । एक पल को सोचो तो ऊपर के विवरण के लिए कोई सबसे सटीक उत्तर है तो वो है माँ। जब आप उन माँ-बाप जिन्होंने आपको जन्म दिया, आपका पालन-पोषण किया , आपको इस लायक बनाया कि आप इस वक़्त ये लेख पढ़ पा रहे हैं , उनको अपनी प्रेमी-प्रेमिका नहीं कह सकते तो शायद किसी और लड़के-लड़की को कहने का आपको कोई हक़ नहीं है। पर ये बात निजी समझदारी की है और मैं माँ-बाप के बारे में बिलकुल भी बात नहीं कर रहा, इन 2-4 पन्ने में उनको चित्रित कर पाना दुष्कर है। अगर माँ है तो ये अलग व्यक्ति क्यूँ ? लोग कहते हैं क्योंकि भगवान हर जगह नहीं हो सकते इसलिए उन्होंने माँ बनाई। पर मैं कहता हूँ माँ भी हर जगह नहीं हो सकती इसलिए भगवान ने दोस्त बनाए और विशेष लोग भी बनाए। आज तक बहुत सारे लोग आए-गए , कई बार लगा की शायद वो विशेष व्यक्ति मिलने ही वाला है पर वो भ्रम था शायद ये भी हो। मैं ये नहीं कह सकता की मेरी खोज पूर्ण हो गयी पर हाँ एक पड़ाव तो जरूर आ गया है। उस पहली मुलाक़ात में एक पल को ऐसा लगा मानो किसी चमत्कारी दर्जी ने कपड़े की जगह एक पूरा आदमी सिल कर दिया हो। सब कुछ एकदम नाप के अनुरूप। शायद कई सालों के बाद मैं खुशियों का बवंडर अपने अंदर महसूस कर रहा था। आप पूछेंगे इसमें प्रेम कहाँ है? हिमालय जितना विशाल है उतना ही गहरा भी है , यहाँ भी प्रेम गहराई में है । प्रेम का होना जरूरी है दिखावा तो हर कोई कर लेता है। कबीर ने अपने एक दोहे में कहा है :

बूंद समानी समूंद में , जानत है सब कोई; समूंद समाना बूंद में , बूझे बिरला कोई।

मैं इस दोहे को प्रेम के संदर्भ में व्याख्या करना चाहूँगा। लोग बूंद हैं और प्रेम समुद्र, लोगों को प्रेम में पड़ते सबने देखा है या सुना है, पर जो प्रेम लोगों के अंदर व्याप्त है ये हर कोई नहीं समझता। मैं उस विशेष व्यक्ति का कृतज्ञ हूँ जिसने ने मुझे इस दोहे के मूल भाव का अहसास करवाया।

कभी-कभी डर लगता है, खोने का उसे। आजकल दुनिया में सब अनिश्चित है। कब-क्या हो जाए ये कोई नहीं बता सकता। पहले सिर्फ पृथ्वी थी फिर लोग हुए और तब से पृथ्वी अस्थमा की मरीज है। किसी प्रसिद्ध कवि ने लिखा है :

आज आदमी में विष इतना भर गया है, की विषधरों का वंश उनसे डर गया है, कल को कहते सुनोगे , आदमी काटा और साँप मर गया है।

ठंडी-ठंडी हवाओं ने मेरी सारी नींद उड़ा दी। प्रकृति शायद मुझे खुश करके मारना चाहती थी। आसमान ने एक बड़े काले पर्दे का रूप ले लिया था और उस पर्दे पर दसियो उजले साँप रेंगते नज़र आ रहे थे। मानो दस सालो के टूटते तारे एक साथ दिख रहे हों और आसमान कह रहा हो – जो चाहिए, जितना चाहिए माँग लो। और मैंने सच में माँग लिए , लगभग सब कुछ । और उसको हमेशा पास रखने की दुआ तो नहीं माँग सका , पर वो जहां रहे, खुश रहे, सलामत रहे।

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